Monday, April 26, 2010

URDU: BHARAT KE LIYE VARDAN

आजतक मुझे महात्मा गाँधी से एक शिकायत हुआ करती थी कि उन्होंने क्यों पाकिस्तान बनने दिया और पाकिस्तान बना भी तो मुसलमानों को यहाँ रुकने क्यों दिया ? इसी शिकायत कि वजह से मैं गाँधी जी को सिर्फ ऐसा इन्सान समझा जो किसी का बुरा नही किया लेकिन महान नही समझती थी . बंटवारा का दंश सहने वाले औए हिन्दू - मुस्लिम दंगे के पीड़ित अकसर गाँधीजी से नफ़रत करते हैं. लेकिन आज मेरी सोच बदल गयी है. आज मुझे एहसास हुआ कि गांधीगिरी भारत को  आवश्यकता थी . अगर गांधीजी ना होते तो आज भारत की स्थिति पाकिस्तान जैसी होती. आज भारत यह कह सकता है की भारत एक बहुसंस्कृति और बहुसम्प्रदायिक देश है जहाँ हर वर्ग के, हर संप्रदाय के, हर संस्कृति के लोग समान स्थान रखते हैं. लेकिन पाकिस्तान ऐसा नही कह सकता है. पाकिस्तान का बनना इंसानियत पर थप्पड़ था लेकिन गांधीजी हिन्दू - मुस्लिम की एकता को बनाये रखकर भारतीय संस्कृति की गरिमा और, मूल्यों और सिद्धांतों की रक्षा की है.
           आज दुनिया भारत को एक शक्तिशाली देश की तरह देखना चाहती है इसका प्रत्यक्ष रूप से वजह यहाँ की संस्कृति है जहाँ दुनिया भर की मान्यताएं समाहित है. भारतीय संस्कृति दुनिया के हर वर्ग और हर समुदाय के लोगो को आपस में जोड़ने का एक सूत्र है. आज अमेरिका जैसा शक्तिशाली देश विश्वस्तरीय बाज़ार में  चीन के धुर्तपूर्ण रवैये के आगे नतमस्तक है तो वहीँ पूरी दुनिया भारत कि तरक्की देखना चाहती है क्योंकि भारत ही ऐसा देश है जो विश्वस्तरीय बाज़ार में चीन के वर्चस्व को ख़त्म कर सकता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत कभी किसी का बुरा नही किया. भारत कि उन्नति से ही सबका कल्याण होगा चाहे वो अमेरिका हो या पाकिस्तान. भारत हमेशा पाकिस्तान से दोस्ताना व्यवहार किया. पाकिस्तान अपनी सरजमी पर पल रहे आतंक को ख़त्म करे तो भारत कि तरक्की से उसे भी लाभ होगा. दक्षिण एशिया कि  गरीबी और बेरोजगारी ख़त्म करने का बस एक ही रास्ता  है भारत कि तरक्की और भारत का पडोशी देशो से मित्रतापूर्ण व्यवहार.
           भारत का बहुसंस्कृति और बहुसम्प्रदायिक होना दुनिया भर के लोगों को यह सिख देता है कि कैसे अलग-अलग वर्ग और सम्प्रदाय के लोग एक साथ रहकर देश की तरक्की में अपना योगदान दे सकते हैं.ब्रिटिश भारत को दीमक की तरह खोखला कर दिए थे लेकिन भारतीय अपने-अपने वर्ग की परवाह किये बिना अपने देश के बारे में सोचा और देश के हित में अपना श्वार्थ छोड़ दिया. आजादी के बाद भारत कई दंगों से घायल हुआ लेकिन आज भारत के लोग सिर्फ भारत की तरक्की चाहते हैं.वो समझते हैं कि हमे आपस में लड़ने के बजाय शिक्षा,स्वाश्थ्य,रोजगार इत्यादी पर ध्यान देने कि आवश्यकता है.
         जब मुस्लिम भारत आये थे तो उनका मकसद भारत को लूटना था मोहम्मद गजनवी और मोहम्मद गौरी इसके उदहारण हैं. लेकिन जब मुगलों ने भारत भारत कि संस्कृति और सभ्यता देखा, यहाँ के लोगों का सदभाव देखा  तो यहीं के होकर रह गये.उन लोगों कि प्रमुख भाषा अरबी और फारसी थी.उन्हें हिन्दुओं से बातचीत करने में परेशानी होती थी.तब उर्दू भाषा का जन्म हुआ.जिसका जन्मस्थान  दिल्ली है.अरबी और फारसी भाषा के बजाये उर्दू को बढ़ावा देना इस बात का साक्ष्य है कि मुस्लिम हिन्दुओं के साथ अच्छे तालुकात चाहते थे.एक तरह से उन्होंने भारतीय संस्कृति को अपना लिया.भारत में ऐसी कोई भाषा नही है जो हर  भारतीय जनता हो.उत्तर भारतीओं का दक्षिण भारतीओं से प्रत्यक्ष रूप से वार्तालाप नही हो सकता,उन्हें आपस में बात करने के लिए अंग्रेजी भाषा कि आवश्यकता होती है लेकिन वहीँ अगर कोई भारतीय हिंदी जनता है लेकिन उर्दू नहीं  जनता, फिर भी वह पाकिस्तान अफगानिस्तान के लोगों से कुछ हिस्सों को छोड़ कर आसानी से बातचीत कर सकते हैं.ठीक उसी तरह पाक और अफगान के लोग हिंदी नही जानते फिरभी हिंदीभाषियों के बातें समझे जाते हैं.पाक और अफगान में बॉलीवुड फ़िल्में बहुत पसंद कि जाती हैं.हमारे संस्कृति में बहुत विषमताएं हैं फिरभी भारतीओं का पाक-अफगान के लोगों के बीच भाषाई मतभेद नही है.यह सब उर्दू कि वजह से है.अगर कोई यह कहता है कि हिंदी हिन्दुओं कि भाषा है और उर्दू मुसलमानों की भाषा है तो यह सरासर गलत है.हिंदी और उर्दू हिंदुस्तान की भाषा है.दोनों अपनाई गयी भाषा है.हिंदी इसाई मिशीनरी की वजह से भारत के कोने -कोने पहुंचा और उर्दू मुसलमानों ने हिंदों के साथ अच्छे सम्बन्ध बनाये रखते हुए अपने मजहब से जुड़े रहने का जरिया बनाया. ईसाई मिशीनरी ने ईसाई धर्म का प्रचार करने के लिए हिंदी को जरिया बनाया.हिंदी  भाषा ने भारत की आजादी के बाद सभी राज्यों को संगठित करने में योगदान दिया.उर्दू से हिन्दू -मुस्लमान की एकता बनी और आपस में समझ बनी.हिंदी और उर्दू भारत के लिए एक वरदान है.हिंदी हमारी रास्त्र भाषा है.उर्दू भारतीय मुस्लिम में प्रचलित है.लेकिन दोनों भाषाएँ वर्तमान समय में उपेक्षा का शिकार हैं. यह बेहद दुःख की बात है.इन दोनों भाषायों को आज प्रोत्साहन की आवश्यकता है.उर्दू भाषा के जरिये पाक और बंगलादेश जैसे पडोशी देशों से अच्छे व्यवहार हो सकते हैं.दक्षिण एशिया के मुसलमानों को यह समझान चाहिए की जिस तरह से हिन्दुओं में कोई बिहारी है तो कोई मराठी,कोई राजस्थानी तो गुजरती,कोई पंजाबी है तो कोई बंगाली है और कोई तमिल है तो कोई कश्मीरी , लेकिन हम सभी भारतीय अपनी अपनी भाषा,वेश-भूषा और संस्कृति के साथ आपस में बिने मतभेद किये सदभाव के साथ रहते हैं ठीक उसी तरह आप भी इस महान संस्कृति के एक अभिन्न अंग हैं.मुस्लिम भारतीय संस्कृति से अलग नही हैं और उर्दू इस बात का साक्ष्य है.भारत की आजादी में और नवनिर्माण में मुसलमानों के योगदान को भुलाया नही जा सकता.उर्दू हमारी एकता का एक मजबूत धागा है.

2 comments:

  1. bilkul shai kaha tumne mai bhi gandhi ji ke baare me kuch aise hi vichar rakhta hoin gandhi ji shayad bharat ka batwara nahi chahte the.apne is lekh ko continue rakho

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  2. आभा जी नमस्कार ! एली जी को धन्यवाद कि उनके माध्यम से आप तक पहुँच सका. उनका मुझ पर बड़ी दीदी जैसा स्नेह है.
    आपके ब्लॉग पर आकर लगा बहुत कुछ है यहाँ पढ़ने के लिए ...और झगड़ा करने के लिए भी. आज ढेर टाइम त नाईं बाटे एहसे कुल ना पढ़ पवलीं. बाकी जेतना पढ़लीं ओह मं बहस के ढेर गुन्जाईस बाटे. त सुरू करतानी -
    मैं अपनी बात को इस तरह शुरू करूंगा कि यदि गान्धी न होते तो देश का बंटवारा न हुआ होता..और तब पाकिस्तान की स्थिति आज के भारत जैसी होती ..बल्कि बृहत्तर भारत की स्थिति पूरे विश्व में सर्वश्रेष्ठ होती. उर्दू का आविर्भाव भारतीय रैयत का ढंग से शोषण किये जा सकने के उद्देश्य से किया गया था. न कि हिन्दू-मुस्लिम बेहतरी के लिए ? किसी भी विदेशी शासक को विजित देश में शासन करने के लिए वहां की भाषा सीखना ज़रूरी होता है जो ऐसा नहीं करता वह वहां टिक नहीं पाता. पुर्तगाली, स्पेनी,फ्रेंच आदि इसीलिये नहीं टिक सके. अंग्रेजों ने शुरू में हिन्दुस्तानी सीखी पर बाद में मैकाले की योजना अधिक पसंद की गयी...क्योंकि उसके लिए यहाँ बड़ी उर्वर भूमि थी. हमें विदेशियों की भाषा सीखने में बड़ी रूचि रहती है.
    ईसाई मिशनरियों ने हिन्दी को अपना माध्यम बनाया ...यह उनकी विवशता है...उन्हें अपने धर्म के प्रचार के लिए छोटी जाति के, गरीब और अशिक्षित लोग चाहिए थे ...उनके बीच हिन्दी माध्यम से ही घुसपैठ बना सकना संभव है.
    आप किस भाई चारे की बात कर रही हैं ? क्या आप ब्लॉग के पर्याप्त संपर्क में नहीं हैं ? आइये हम आपको दिखाते हैं कि किस तरह भारतीय मुसलमान भारत में शरीयत लागू करने और भारत को इस्लामिक देश में बदलने के लिए कटिबद्ध है. वे हिन्दू लड़कियों के लिए, देवी-देवताओं के लिए और वेदों के लिए कितने अश्लील शब्दों का प्रयोग अपने ब्लॉग पर करते हैं ...यह देखने के बाद शायद आप यूटोपियन थाट से बाहर आ सकें.
    उर्दू में यदि भाईचारे की इतनी ही काबिलियत होती तो पाकिस्तान में यूँ खून-खराबा न हो रहा होता. मैं उर्दू की खिलाफत नहीं कर रहा हूँ ...उर्दू मुझे भी अच्छी लगती है पर भाई चारे में उर्दू के योगदान को स्वीकार नहीं किया जा सकता.
    आपको लगता है कि मुगल शासक भारत के शुभेक्षु थे...शायद इसी लिए उन्होंने भारत की प्राचीन इमारतों ,किलों, और मंदिरों पर आक्रमण कर उनका किंचित रूपांतरण कर इस्लामी नाम करण कर दिया. कृपया पुरुषोत्तम नारायण ओक की पुस्तकें पढ़ें जिनमें उन्होंने ऐतिहासिक व् पुरातात्विक साक्ष्यों के साथ मुगलों के इस कुकृत्य की कलई खोली है ..
    आभा जी ! आप से गुजारिश है कि समय निकाल कर हल्ला बोल पर तशरीफ ज़रूर लायें. हमें आप जैसों की ज़रुरत है ....भले ही हम आपसे उलझते क्यों न रहें.

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